Saturday 7 September 2013

" देवियों और सज्जनों "

इन देवियों की रक्षा , हम सज्जनॊ आगे आये 
ये दर्द देश आज , विश्वास लौटा दें हम आगे आये 
जिस देश को हम माँ कहते आये है 
जिस देश में हम भाई बहन एक मानते है

कौन लौटा दें इस देश को इज्ज़त, हम सज्जनॊ आगे आये
ये देश न कभी सर छुकाये ,विश्वास लौटा  दें हम आगे आये
जिस देश में हम देवियों की पूजा करते आये है
जिस देश नें संसार को संस्कार सिखाये है
जॊर से बॊले की आप इधर सुरक्षित हो , हम सज्जनॊ आगे आये
ये देश की प्रकृति दुनिया देखे , विश्वास लौटा  दें हम आगे आये
जिस देश में नृत्य कला सर्व श्रेष्ट है
जिस देश में गंगा यमुना कावेरी बहती रही गीत है
सर उठाके कहे भारत देश हमारा , हम सज्जनॊ आगे आये
ये देश में देवियों भी निर्भय आगे आये , विश्वास लौटा  दें हम आगे आये
जिस देश में देवियों ने भी किया है शासन
जिस देश में देवियों भी ज़ारी है प्रशासन में
नई पीड़ियों को गर्व दिलादें ,हम सज्जनॊ आगे आये
ये देश की नई पीड़ियों आगे बड़े , विश्वास लौटा  दें हम आगे आये
जिस देश में सत्याग्रह भी जीते है
जिस देश में क्रांति का भी मार्ग अपनाए है
हम सिखाये अपने घर से ,हम सज्जनॊ आग आये
येही आन्दोलन का तैयार हो जाये , विश्वास लौटा  दें हम आगे आये
जिस देश में काली का स्वरुप है
जिस देश में सरोज्नी को भी जन्म दिया है
संभोदित करते हम नारी को देवियों और नर को सज्जन
वो शब्द की मान्यता दिखाए – “
 देवियों और सज्जनों “

Monday 26 August 2013

ये दूरियाँ

ये दूरियाँ कितने ही दूर हो
ये दूरियाँ उतने ही करीब हो

ये हमने कभी नापा नहीं था
ये हमने कभी सोचा नहीं था
ये फासले  कोई सपना है
ये  कभी मिटने वाला है

एक दिन था जब ये फासलें नाराश था हमसे
एक दिन था जब ये राहों भी रहता था अपने लिए
एक दिन था जब तुमने वो नरम सी हाथ अपने में आबाद किया था
और एक दिन था जब हर एक पल भी हमारा था 

आज फसलें को भी तुमने प्यार करना सिखाया
राह हम खुद चुन रहा है तुमारे बिना
वो नरम हाथ शायद मेरे सपनों में आबाद हो
और आज मालूम नहीं की किसी एक पल भी ये जिंदगी देगी तुमारे साथ

एक दिन था जब हम वो बूंदों का इंतजार करता था
वो बूँद  आने से फरियाद करता था खुदा से 
एक दिन था जब बग़ीचे हमारे लिए किलते थे
वो पेड़ों की छाव हमारे इंतजार करता था

आज मैं इधरजिधर वो बूंदों को एहसास भी नहीं की
शायद जिधर प्यार नहीं उधर बूँद भी क्यों
बग़ीचे क्यों किलेंगे ये बंजर में
छाव की तमन्ना भी नहींये रेगिस्थान रहेंगे हमेशा

फिर भी ये दूरियाँ जितनी भी दूर हो
ये दिलों की दूरियाँ उतनी ही करीब हो

Thursday 1 August 2013

दिल की वो बातें

दिल की वो बातें , दिल में ही रह जाते
तुम से भी तो कह नहीं पातें

कह नहीं सकते है तो, ऐसा ही रह जाते
जाने दी तो , न कही खो जाते

पहले खुद समचते है इन बातों को
ढूंढे अभी वो दिल को, जिसको एतबार कर लूं

अगर दिल को कुछ गहरी चोट लगी है
तो जरूर वो बातें माँ को ही मिटा सकती है

अगर गगन को चूने की तमन्ना है,
तो जरूर वो बातें पापा ही समच सकते है

अगर वो शक्ति को समाचना है,
तो जरूर वो बातें दादा- दादी को ही समचा सकती है

तन्हाईयों की बातें है तो
साथ लेलें दोस्तों को

मासूमियत की बातें है तो
सीख लें अपने छोटों से

प्रेम की बातों को तो वही समच सकते है
जो अपने दिल में आबाद है और फासलों से अतीत है

दिल में और भी बहुत बातें है
जो इस कविता में पूरा नहीं होते !

Tuesday 14 May 2013

मेरी अम्मा


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मेरी नज़रों की पहली ख़ुशी तुम ही है अम्मा
मेरी पहली दुधिया मुस्कान तुमको देखके ही है अम्मा

तुम्हारी हाथ पकडके चलना सीखा है अम्मा
तुमने ही हाथ दिखाके दोड़ना सिखाया है अम्मा

शब्दों का पहचान भी तुम्हारी होंटों से ही है अम्मा
और वो पहली शब्द जो निकली मेरी जीब से वो तुम ही है अम्मा

हमरी गाँव की लावण्यता तुमने ही बताया है अम्मा
और ये पशु पक्षियों का पहचान भी तुमने ही किया है अम्मा

तुम्हारी पल्लू के कोने पकडके ही पहली कक्षा गयी है अम्मा
तुम्हारी धुअओ से आज इधर तक पहुंची है अम्मा

मेरी पहली दोस्ती और पहला प्यार तुम ही है अम्मा
सम्मान सहन शक्ति और क्षमा तुम से ही सीखी है अम्मा

संस्कार का सीख तुम से ही हुई है अम्मा
दुनिया की पहचान भी तुम्हारी आंखों से ही हुई है अम्मा

ये कविता जो लिखी है वो भी उसी प्यार की वजह से
मेरे जीवन का दीपक तुम ही है अम्मा
ममता का स्वरुप और मेरा संसार तुम ही है अम्मा

Tuesday 7 May 2013

मेरी फ्लैट की बालकनी




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जब से मैं  तेरी दीवाना हो गया
तब से तुमने मेरी यादों की बरसात गिराया

याद आती है  मेरी गाँव की, उधर की हवओं  की
वो सुबह की रोशिनी की , वो शाम की तनहाइयाँ

जब से तुम्हारे साथ मेरे पल को निवेश किया
तब से मिली गरम सुलैमानी में मोहब्बत का एहसास

ये चिड़ियों भी तुमें  इतना चाहता हे
नाचे आए तेरे आँगन में , और हमरी भी मन बहलायें

इन पेड़ों की छाव नें हमको दिलाया
मन में शान्तता की जाल सिलाया

पत्तों  के बीच से गगन की  मंजुल  चमकने लगी
और वो गगन अपनी आंखों  से हमको इशारा करने लगी

जब से तुम्हारी गोद में बैटने लगी
तब से लगने लगी की चारों और प्रकृति भी नाचने लगी

गुलाम अली की ग़ज़ल ले चली प्रेम गगन में
तुमें छोडके सो जाऊं कैसे , तुम्हारी गोद में ही सुबह निकालूं